तुलसी स्तोत्र और मंत्र
प्रिय पाठकों आदि के लेखों में हमने तुलसी पूजा के महत्व के बारे में जाना अब इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे कि तुलसी की पूजा किन मंत्रों द्वारा की जानी चाहिए और सबसे पहले इन स्तोत्रों और मंत्र द्वारा उनकी पूजा कब और किसने की। इस लेख में तीन मुख्य बातें बताई गई हैं:
- तुलसी मंत्र
- तुलसी स्तोत्र
- सार्थक नामावली स्तोत्र (यह तुलसी नामाष्टक संक्षिप्त होते हुए भी बहुत प्रभावी है)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक एकादशी, तुलसी विवाह में और कार्तिक पूर्णिमा के दिन इन स्तोत्रों एवं मंत्र द्वारा तुलसी जी का पूजन करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और विष्णुलोक को चला जाता है साथ ही कार्तिक महीने में विष्णु जी को तुलसी अर्पित करने से सहस्त्र गौ दान करने का पुण्य मिलता है।
मंत्र
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृंदावन्यै स्वाहा।।
तुलसी जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था और सबसे पहले इस दिन श्रीहरि ने उनकी पूजा की थी। भगवान ने स्नान आदि करने के बाद तुलसी स्तोत्र का निर्माण किया और उसके बाद लक्ष्मी बीज आदि से सुसज्जित उपरोक्त दशाक्षर मंत्र का उच्चारण किया जो कल्पतरु के समान है जिसका निरंतर जाप करने से मनुष्य को सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं।
सार्थक नामावली स्तोत्र (नामाष्टक)
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनीं विश्वपूजिताम् ।
पुष्पसारां नन्दिनीं च तुलसीं कृष्णजीवनीम् ॥॥
एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् ।
यः पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ॥॥
पुष्पसारां नन्दिनीं च तुलसीं कृष्णजीवनीम् ॥॥
एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् ।
यः पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ॥॥
अर्थ: वृंदा वृंदावनी विश्वपावनी विश्वपूजिता पुष्पसारा नंदिनी तुलसी और कृष्ण जीवनी यह तुलसी जी के आठ नाम है। यह सार्थक नामावली स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। जो तुलसीजी की पूजा करके इस नामाष्टक को पढ़ता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
तुलसी स्तोत्र
ध्यान
तुलसीं पुष्पसारां च सतीं पूज्या मनोहराम् ।
कृत्स्नपापेध्मदाहाय ज्वलदग्निशिखोपमाम् ॥॥
पुष्पेषु तुलनाऽप्यस्या नासीद्देवीषु वा मुने ।
पवित्ररूपा सर्वासु तुलसी सा च कीर्तिता ॥॥
शिरोधार्यां च सर्वेषामीप्सितां विश्वपावनीम् ।
जीवन्मुक्ता मुक्तिदा च भजे तां हरिभक्तिदाम् ॥॥
कृत्स्नपापेध्मदाहाय ज्वलदग्निशिखोपमाम् ॥॥
पुष्पेषु तुलनाऽप्यस्या नासीद्देवीषु वा मुने ।
पवित्ररूपा सर्वासु तुलसी सा च कीर्तिता ॥॥
शिरोधार्यां च सर्वेषामीप्सितां विश्वपावनीम् ।
जीवन्मुक्ता मुक्तिदा च भजे तां हरिभक्तिदाम् ॥॥
भगवान उवाच
वृन्दारूपाश्च वृक्षाश्च यदैकत्र भवन्ति च ।
विदुर्बुधास्तेन वृन्दा मत्प्रियां तां भजाम्यहम् ॥॥
पुरा बभूव या देवी ह्यादौ वृन्दावने वने ।
तेन वृन्दावनी ख्याता सुभगां तां भजाम्यहम् ॥॥
असंख्येषु च विश्वेषु पूजिता या निरन्तरम् ।
तेन विश्वपूजिताख्यां जगत्पूज्यां भजाम्यहम् ॥॥
असंख्यानि च विश्वानि पवित्राणि यया सदा ।
तां विश्वपावनीं देवीं विरहेण स्मराम्यहम् ॥॥
देवा न तुष्टाः पुष्पाणां समूहेन यया विना ।
तां पुष्पसारां शुद्धां च द्रष्टुमिच्छामि शोकतः ॥॥
विश्वेयत्प्राप्तिमात्रेण भक्त्यानन्दो भवेद्ध्रुवम् ।
नन्दिनी तेन विख्याता सा प्रीता भविता हि मे ॥॥
यस्या देव्यास्तुला नास्ति विश्वेषु निखिलेषु च ।
तुलसी तेन विख्याता तां यामि शरणं प्रियाम् ॥॥
कृष्णजीवनरूपा या शश्वत्प्रियतमा सती ।
तेन कृष्णजीवनीति मम रक्षतु जीवनम् ॥॥
विदुर्बुधास्तेन वृन्दा मत्प्रियां तां भजाम्यहम् ॥॥
पुरा बभूव या देवी ह्यादौ वृन्दावने वने ।
तेन वृन्दावनी ख्याता सुभगां तां भजाम्यहम् ॥॥
असंख्येषु च विश्वेषु पूजिता या निरन्तरम् ।
तेन विश्वपूजिताख्यां जगत्पूज्यां भजाम्यहम् ॥॥
असंख्यानि च विश्वानि पवित्राणि यया सदा ।
तां विश्वपावनीं देवीं विरहेण स्मराम्यहम् ॥॥
देवा न तुष्टाः पुष्पाणां समूहेन यया विना ।
तां पुष्पसारां शुद्धां च द्रष्टुमिच्छामि शोकतः ॥॥
विश्वेयत्प्राप्तिमात्रेण भक्त्यानन्दो भवेद्ध्रुवम् ।
नन्दिनी तेन विख्याता सा प्रीता भविता हि मे ॥॥
यस्या देव्यास्तुला नास्ति विश्वेषु निखिलेषु च ।
तुलसी तेन विख्याता तां यामि शरणं प्रियाम् ॥॥
कृष्णजीवनरूपा या शश्वत्प्रियतमा सती ।
तेन कृष्णजीवनीति मम रक्षतु जीवनम् ॥॥
फलश्रुति
अपुत्रो लभते पुत्रं प्रियाहीनो लभेत्प्रियाम् ।
बन्धुहीनो लभेद्बन्धुं स्तोत्रस्मरणमात्रतः ॥॥
रोगी प्रमुच्यते रोगाद्बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
भयान्मुच्येत भीतस्तु पापान्मुच्येत पातकी ॥॥
इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणे प्रकृतिखण्डे नारदनारायणसंवादे
बन्धुहीनो लभेद्बन्धुं स्तोत्रस्मरणमात्रतः ॥॥
रोगी प्रमुच्यते रोगाद्बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
भयान्मुच्येत भीतस्तु पापान्मुच्येत पातकी ॥॥
इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणे प्रकृतिखण्डे नारदनारायणसंवादे
तुलसी स्तोत्रं सम्पूर्णम।।
ध्यान
तुलसी सभी फूलों का सार है वह सती है पूजनीय है मनोहर है।
सभी पापरूपी इंधन को जला डालने मैं समर्थ अग्नि है।।
इसकी तुलना ना तो फूलों से हो सकती है नाही देवी से हो सकती है।
इसलिए इस पवित्र देवी को तुलसी कहा गया।।
यह सबकी शिरोधार्या है अभीष्ट है विश्व को पावन करने वाली है।
सभी को जीवनमुक्ति प्रदान करने वाली मुक्ति और हरीभक्ति प्रदान करने वाली हैं।।
भगवान कहते हैं
जब वृंदा के वृक्ष एक जगह जमा हो जाते हैं।
तब मेरी प्रेमिका तुलसी को बुद्धिमान लोग वृंदा कहते हैं मैं उसकी सेवा कर रहा हूँ।।
पुरातन काल में जो वृंदावन में प्रकट हुई थी जिस कारण उसे वृंदावनी कहा जाता है।
उस सौभाग्यशाली देवी की मैं सेवा कर रहा हूँ।।
अनगिनत विश्व में उसकी हमेशा पूजा होती है इसलिए उसे विश्व पूजिता कहा जाता है।
इसलिए उस जगत पूजित देवी की मैं पूजा कर रहा हूँ।।
जिससे अनगिनत विश्व हमेशा पवित्र रहते हैं।
उस विश्व पावनी देवी की बिरहा में तड़पकर याद मैं कर रहा हूँ।।
जिसके अभाव में देव अनेक फूलों को पाकर भी प्रसन्न नहीं होते।।
उस शुद्ध और पुण्यरुपी देवी को देखने के लिए मैं चिंतित हूँ।।
जिसके सिर्फ प्राप्ति भर से ही भक्तों प्रसन चित्र हो जाता है।
जिस कारण से वे नंदिनी के नाम से प्रसिद्ध है वह देवी तुलसी मुझ पर प्रसन्न हो जाए।।
पूरे संसार में जिसकी कोई तुलना ना हो जिसके कारण उसका नाम तुलसी पड़ा हो।
उस प्रिया कि मैं शरण में जाता हूँ।।
जो कृष्ण जी की जीवनस्वरूपा है जो उनकी प्रियतमा है।
वह कृष्ण जीवनी देवी मेरे जीवन की रक्षा करें।।
फलश्रुति
तुलसी जी के स्तोत्र के स्मरण मात्र से पुत्रहीन को पुत्र स्त्रीहीन को स्त्री प्राप्त होती है।
बंधुहीन को बंधु प्राप्त होते हैं।।
रोगी रोगों से मुक्त हो जाते हैं बंधन में फंसे हुए लोग बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।
डरा हुआ प्राणी डर से मुक्त हो जाता है और पापी मनुष्य पाप से मुक्त हो जाता है।।