गजानन महाराज बावन्नी
प्रिय पाठको आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद आज मैं इस आर्टिकल के माध्यम से आपको एक बहुत ही खास काव्य रचना के बारे में बताने जा रहा हूं इसकी रचना संत दासगणू गुरु महाराज ने की थी। इस रचना का नाम श्री गजानन महाराज बावन्नी है जैसे कि नाम से ही पता चलता है इसमें 52 पंक्तियां हैं जिसमें शेगाव के संत श्री गजानन महाराज ने अपने जीवन काल में अपने भक्तों के लिए या अपने भक्तों की भलाई के लिए जो चमत्कार किए हैं उनका वर्णन है।
इस बावन्नी में ऐसा बताया गया है कि हमें रोज इसका पाठ करना चाहिए रोज़ ना हो सके तो कम से कम गुरुवार के दिन इस का पाठ अवश्य करना चाहिए इस काव्य की 47 वी से 50 वी पंक्ति में बताया गया है कि जो कोई भी पूरी श्रद्धा के साथ 52 गुरुवार इस बावनी का पाठ करता है उसके सारे विघ्न दूर हो जाते हैं और उसका जीवन सुखों से भर जाता है। भक्त की सभी चिंताएं दूर हो जाती है और श्री गजानन महाराज उसे संकट से बाहर निकाल लेते हैं। दरअसल विजय ग्रंथ में जो 21 अध्याय दिए गए यह बावन्नी उन सभी अध्यायों का सार है तथा इनमें गजानन महाराज द्वारा की गई सभी लीलाओं का वर्णन है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं श्री गजानन महाराज का विजय ग्रंथ का हर अध्याय किसी ना किसी समस्या का निवारण करता है और कई बार ऐसा होता है कि मन में इच्छा होते हुए भी हम पूरे ग्रंथ का पारायण नहीं कर सकते या समय के अभाव में नहीं कर पाते इसलिए कम से कम, हम इस बावनी का रोज़ पाठ कर सकते हैं। गजानन महाराज प्रकट दिन पर भी इसका पाठ करना चाहिए।
जय जय सद्गुरू गजानना ।
रक्षक तुची भक्तजना ।।१।।
निर्गुण तू परमात्मा तू ।
सगुण रूपात गजानन तू ।।२।।
सदेह तू परि विदेह तू ।
देह असूनि देहातीत तू ।।३।।
माघ वद्य सप्तमी दिनी ।
शेगांवात प्रगटोनी ।।४।।
उष्ट्या पत्रावळी निमित्त ।
विदेहत्व तव हो प्रगट ।।५।।
बंकटलालावरी तुझी ।
कृपा जाहली ती साची ।।६।।
गोसाव्याच्या नवसासाठी ।
गांजा घेसी लावुनी ओठी ।।७।।
तव पदतीथें वाचविला ।
जानराव तो भक्त भला ।।८।।
जानकीरामा चिंचवणे ।
नासवुनी स्वरूपी आणणे ।।९।।
मुकिन चंदुचे कानवले ।
खाऊनि कृतार्थ त्या केले ।।१०।।
विहिरीमाजी जलविहिना ।
केले देवा जलभरणा ।।११।।
मधमाश्यांचे डंख तुवा ।
सहन सुखे केले देवा ।।१२।।
त्यांचे काटे योगबले ।
काढुनि सहजी दाखविले ।।१३।।
कुस्ती हरिशी खेळोनी ।
शक्ती दर्शन घडवोनी ।।१४।।
वेद म्हणुनी दाखविला ।
चकित द्रविड ब्राम्हण झाला ।।१५।।
जळत्या पर्यकावरती ।
ब्रम्हगिरीला ये प्रचिती ।।१६।।
टाकळीकर हरिदासाचा ।
अश्व शांत केला साचा ।।१७।।
बाळकृष्ण बाळापूरचा ।
समर्थ भक्तचि जो होता ।।१८।।
रामदासरूपे त्याला ।
दर्शन देवुनि तोषविला ।।१९।।
सुकलालाची गोमाता ।
द्वाड बहू होती ताता ।।२०।।
कृपा तुझी होतांच क्षणी ।
शांत जाहली ती जननी ।।२१।।
घुडे लक्ष्मण शेगांवी ।
येता व्याधी तूं निरवी ।।२२।।
दांभिकता परि ती त्याची ।
तू न चालवूनि घे साची ।।२३।।
भास्कर पाटील तव भक्त ।
उध्दरलासी तू त्वरीत ।।२४।।
आज्ञा तव शिरसा वंद्य ।
काकहि मानति तुज वंद्य ।।२५।।
विहिरीमाजी रक्षियला ।
देवां तु गणु जवऱ्याला ।।२६।।
पितांबराकरवी लीला ।
वठला आंबा पल्लविला ।।२७।।
सुबुध्दी देशी जोश्याला ।
माफ करी तो दंडाला ।।२८।।
सवड्द येथील गंगाभारती ।
थुकुंनी वारिली रक्तपिती ।।२९।।
पुंडलिकांचे गंडांतर ।
निष्ठा जाणुनि केले दुर ।।३०।।
ओंकारेश्र्वरी फुटली नौका ।
तारी नर्मदा क्षणात एका ।।३१।।
माधवनाथा समवेत ।
केले भोजन अदृष्ट ।।३२।।
लोकमान्य त्या टिळकांना ।
प्रसाद तूंची पाठविला ।।३३।।
कवर सुताची कांदा भाकर ।
भक्षिलीस त्वा प्रेमाखातर ।।३४।।
नग्न बैसुनी गाडीत ।
लिला दाविली विपरीत ।।३५।।
बायजे चित्ती तव भक्ती ।
पुंडलिकावर विरक्त प्रीती ।।३६।।
बापुना मनी विठ्ठल भक्ती ।
स्वये होशि तू विठ्ठल मूर्ती ।।३७।।
कवठ्याचा त्या वारकऱ्याला ।
मरीपासूनी वाचविला ।।३८।।
वासुदेव यति तुज भेटे ।
प्रेमाची ती खुण पटे ।।३९।।
उद्घट झाला हवालदार ।
भस्मिभूत झाले घरदार ।।४०।।
देहांताच्या नंतरही ।
कितीजणा अनुभव येई ।।४१।।
पडत्या मजुरा झेलियले ।
बघती जन आश्र्चर्य भले ।।४२।।
अंगावरती खांब पडे ।
स्त्री वांचे आश्र्चर्य घडे ।।४३।।
गजाननाच्या अद्भुत लीला ।
अनुभव येती आज मितीला ।।४४।।
शरण जाऊनी गजानना ।
दु:ख तयाते करि कथाना ।।४५।।
कृपा करि तो भक्तांसी ।
धावुनी येते वेगेसी ।।४६।।
गजाननाची बावन्नी ।
नित्य असावी ध्यानीमनी ।।४७।।
बावन्न गुरूवारी नेमे ।
करा पाठ बहू भक्तीने ।।४८।।
विघ्ने सारी पळती दूर ।
सर्वसुखाचा येई पुर ।।४९।।
चिंता साऱ्या दुर करी ।
संकटातूनी पार करी ।।५०।।
सदाचार रत सद्भक्ता ।
फळ लाभे बघता बघता ।।५१।।
भक्त बोले जय बोला ।
गजाननाची जय बोला ।।५२।।
जय बोला हो जय बोला । गजाननाची जय बोला।।
।। अनंत कोटी ब्रम्हांडनायक महाराजाधिराज योगीराज परब्रम्ह सच्चिदानंद भक्त प्रतिपालक शेगांव निवासी समर्थ सदगुरु श्री गजानन महाराज की जय ।।
।। गण गण गणात बोतेे ।।
लेखन और संपादन
श्री भूपेश सावरकर(सशुल्क ज्योतिष और वास्तु शास्त्र सलाहकार)मो. 9371257665