धनतेरस पर दीप-दान, धन्वंतरि और कुबेर पूजन का महत्व।
दीपावली का पर्व पूरे भारत देश में बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। दिवाली के उत्सव की शुरुआत कार्तिक (अमांत कैलेंडर के अनुसार आश्विन) महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि से होती है जिसे हम धनतेरस के रूप में मनाते हैं और पर इस दिन से लेकर अगले 5 दिनों तक दिवाली रहती है।
इस दिन मुख्य रूप से पूजा पाठ के यह कार्य बहुत ही लाभकारी माने गये हैं:
- दीपदान करना,
- आरोग्य के देवता श्री धन्वंतरि की पूजा करना और
- धन के देवता कुबेर की पूजा करना।
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धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज को दीपदान करना बहुत ही शुभ माना गया है और ऐसा करने से अकाल मृत्यु का डर समाप्त हो जाता है इसका पुराणों में भी वर्णन मिलता है। एक बार यमदूतों ने यमराज जी से पूछा कि ऐसा कोई उपाय बताइए जिससे कि मनुष्य को अकाल मृत्यु प्राप्त ना हो।
धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज को दीपदान करना बहुत ही शुभ माना गया है और ऐसा करने से अकाल मृत्यु का डर समाप्त हो जाता है इसका पुराणों में भी वर्णन मिलता है। एक बार यमदूतों ने यमराज जी से पूछा कि ऐसा कोई उपाय बताइए जिससे कि मनुष्य को अकाल मृत्यु प्राप्त ना हो।
यमराज जी ने उत्तर दिया की जो भी व्यक्ति कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन हर साल प्रदोष काल के समय अपने घर के दरवाजे पर विधिपूर्वक दीया लगाएगा वह अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाएगा और उसे यमलोक नहीं आना पड़ेगा। इसे यम दिपक भी कहते हैं।
पूजा का मुहूर्त
धनतेरस के दिन पूजा करने का सबसे अच्छा मुहूर्त प्रदोष काल होता है। त्रयोदशी तिथी तीन मुहूर्त (1 मुहूर्त = 48 मिनट) से अधिक होने पर उसे लेना चाहिये।
प्रदोष काल किसे कहते हैं?
शास्त्रो में ऐसा कहा गया है कि सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त तक प्रदोष काल होता है। उदाहरण के लिए यदि दिल्ली में शाम को 5:42 पर सूर्यास्त होता है तो प्रदोष काल शाम 7:08 बजे से शुरू हो जाएगा और रात 8:06 तक रहेगा। शिवजी का प्रदोष व्रत भी इसी तिथी को किया जाता है।
दिन: 29 अक्टूबर 2024, मंगलवार
दीपदान का समय शाम 6:36 से 8:10 तक होगा।
स्थिर लग्न अर्थात वृषभ लग्न का समय शाम 6:36 से लेकर 8:35 pm
इस अवधि के दौरान हमें धनतेरस की पूजा करनी चाहिए।
(स्थानीय समय नागपुर)
(स्थानीय समय नागपुर)
दीप-दान विधी : सबसे पहले स्नान करके शुद्ध हो जाए और उसके बाद आटे का एक दीपक बना ले उसमें बाती लगाने के बाद तिल का तेल भर ले और उसे अपने घर के मुख्य द्वार पर प्रज्वलित करें और दीया इस प्रकार रखा जाना चाहिए कि बाती का मुख दक्षिण की ओर हो। दीपक को द्वार पर रखते समय निम्नलिखित मंत्र पढ़ा जाना चाहिए।
मंत्र
मृत्यूना पाश दंडाभ्याम कालेन च मया सह।
त्रयोदश्याम दिपदानात सूर्यजः प्रियतामिती।।
अर्थ: त्रयोदशी के दिन दिए का दान करने से मृत्यु, पाश, दंड काल और लक्ष्मी जी के साथ सूर्य के पुत्र यम प्रसन्न हो।
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धन्वंतरि का प्राकट्य : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं और असुरों द्वारा अमृत पाने के लिये समुद्र मंथन किया गया उस समय त्रयोदशी तिथि पर एक दिव्य युवा पुरुष प्रकट हुए उनका रूप अत्यंत ही अलौकिक प्रतीत हो रहा था।
उनकी भुजाएं लंबी और पुष्ट थी और गला इस प्रकार दिख रहा था मानो वह शंख हो और शंख के समान उस में उतार-चढ़ाव दिख रहे थे। उनकी आँखें लालीमा लिए हुए थी और उनके शरीर का रंग सांवला था। उनके शरीर पर पीतांबर था तथा कानों में कुंडल थे जो चमकीले मणियों से युक्त थे। उनकी चार भुजाएँ थी जिसमें से एक में चक्र था और एक में शंख था और शेष दो हाथों से वे अमृत से भरा हुआ कलश पकड़े हुए थे।
वे साक्षात श्री हरि विष्णु के अंशावतार थे जो कलांतर में आयुर्वेद के प्रवर्तक बने और धन्वंतरि कहलाए।
धन्वंतरि जयंती के अवसर पर लोग पितल का नया बर्तन खरीदते हैं। जिससे उनका घर धन धान्य से भरा रहता है। इस बर्तन की पहले पूजा की जाती है और उसमें ही कुछ व्यंजन रखकर भोग लागाया जाता है।
चौकी पर एक स्वच्छ कपड़ा बिछाकर उस पर श्री गणेश, कुबेर और धन्वंतरि जी की मूर्ति रखकर धूप, दीप, नैवेद्य, गंध और पुष्प से पूजा करें। उपर दिये वर्णन के अनुसार ध्यान करें और मंत्र पढे।
श्री गणेशाय नमः
मंत्र
ओम धनवंतरये नमः।।
(उपरोक्त मंत्र का 21 अथवा 108 बार जप करें)
स्तोत्र
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥
अर्थ: अपने चार हाथों में शंख, चक्र, जोंक और अमृत कलश लिए हुए भगवान धन्वंतरि का हम नमन करते हैं। जिसके ह्रदय में पवित्र प्रकाश की सबसे सुंदर चमक विराजमान है, जो उनके सिर के चारो ओर फैला हुआ है और जो उनकी कमल जैसी आंखों से निकलता है। अंधेरे पानी पर जिसका तेजस्वी शरीर चमचमाता है। कमर और जांघ पीले कपड़े में ढके हुए हैं और जिनके केवल खेल मात्र से सभी बीमारियों ऐसे पराजित होती हैं जैसे किसी शक्तिशाली जंगल की आग से।