उत्पन्ना एकादशी
मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी है। इस दिन एकादशी देवी श्री हरि विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी इसी कारण से इसे उत्पन्ना कहा जाता है।
इसका व्रत दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू हो जाता है। दशमी तिथि को रात को भोजन ना करें और ना ही दातुन करें अगले दिन सुबह स्नान आदि से शुद्ध होकर श्री हरि विष्णु को धूप, दीप, तुलसी और नैवेद्य अर्पण करें। एकादशी का व्रत धारण करने की विस्तृत विधि जानने के लिए यहाँ पर क्लिक करें।
उत्पन्ना एकादशी 2023 date
रविवार, 8/9 दिसंबर 2023
एकादशी व्रत कथा
एक बार युधिष्ठिर ने भगवान से पूछा की एकादशी तिथि कैसे उत्पन्न हुई? इस तिथि को पवित्र क्यों माना जाता है और यह सभी के लिए इतनी प्रिय क्यों है?
भगवान बोले, हे युधिष्ठिर! सतयुग में एक बहुत ही दुराचारी और भयंकर राक्षस हुआ करता था उसका नाम मूर था। मूर ने स्वर्ग लोक पर विजय पा ली थी और उसने सभी देवताओं को निष्कासित कर दिया था और उन सब को पृथ्वी पर रहना पड़ रहा था।
उसके अत्याचारों से परेशान होकर इंद्र आदि सभी देवता शिव जी के पास गए और उस दैत्य से मुक्ति दिलाने के लिए सहायता मांगी। शिव जी ने उन सभी देवताओं को कहा की जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु के पास जाइए वही आपको इस दैत्य से मुक्ति दिला सकते हैं।
इसके बाद महादेव जी की बात मानकर इंदिरा आदि देवता क्षीर सागर में श्री हरि विष्णु के पास पहुँचे जो वहाँ आराम कर रहे थे और इंद्र ने श्री हरि विष्णु की स्तुति की और कहा, “आप जगत के पालनहार हैं आप सभी जीवो की रक्षा करते हैं कृपा करके हमारी भी रक्षा कीजिए”।
तत्पश्चात विष्णु जी ने इंद्र से उस राक्षस के बारे में पूछा कि वह कौन है और कहाँ पर रहता है तब इंद्र ने जवाब दिया कि उस राक्षस का नाम मूर है। वह नाड़ीजंग का पुत्र है जिसकी उत्पत्ति ब्रह्मा के वंश में हुई थी। वह चंद्रावती नाम की नगरी में रहता है। वही उसकी राजधानी है।
इंद्र की बात सुनकर श्री हरि विष्णु सभी देवताओं को लेकर चंद्रावती नगरी की ओर चले गए वहाँ उन्होंने देखा कि वह दैत्य बहुत भीषण युद्ध कर रहा था और सभी देवता घबराकर यहाँ वहाँ भाग रहे थे। उसने जैसे ही विष्णु जी को देखा उसने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा।
इसके बाद भीषण युद्ध शुरू हो गया विष्णु जी ने अपने बाणों और चक्र से असंख्य राक्षसों को मार डाला उनके टुकड़े सभी और बिखरे पड़े थे यह देख कर राक्षस घबरा गए और इधर उधर भागने लगे।
इसके बाद विष्णु जी बद्रिकाश्रम चले गए जहाँ पर सिंहावती नाम की एक गुफा थी उसमें विष्णु जी विश्राम करने लगे। मूर भगवान का पीछा करते हुए वहाँ आ गया और अंदर आकर उसने देखा कि भगवान सो रहे हैं। उसने सोचा कि मैं देवता को नींद में ही खत्म कर देता हूँ जिसने सभी राक्षसों को डरा रखा है।
उसी समय भगवान के शरीर से एक दिव्य कन्या प्रकट हुई जो दिखने में बहुत ही रूपवती थी और सभी अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित थी। वह भगवान के अंश से ही उत्पन्न हुई थी उसने तुरंत ही मूर को युद्ध के लिए ललकारा और दोनों में घमासान युद्ध छिड़ गया। वह देवी अत्यंत पराक्रमी थी उसने उस राक्षस को मार गिराया।
इसके बाद नींद से जागने पर भगवान ने देखा कि वह भयंकर राक्षस जमीन पर मरा पड़ा है। भगवान ने पूछा यह बहुत ही शक्तिशाली था इस को किसने मारा? तब देवी ने कहा आपकी कृपा से ही मैंने इसे मारा है। भगवान ने खुश होकर उस देवी से वर मांगने के लिए कहा
देवी ने कहा ईश्वर मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि जो भी कोई मेरा व्रत करें उसके सभी पाप नष्ट हो जाए और उसे विष्णु लोक प्राप्त हो। उस दिन जो भी एक समय भोजन करके या दोनों समय निराहार रहकर मेरा व्रत करें उसे आपके आशीर्वाद से धर्म, सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति हो।
भगवान ने उसे उसकी इच्छा के अनुसार वरदान दिया और साथ ही यह भी कहा क्योंकि तुम एकादशी के दिन उत्पन्न हुई हो इसलिए तुम्हारा नाम एकादशी होगा। तुम्हारे व्रत का पुण्य सभी तीर्थों के पुण्य से भी अधिक होगा।
श्री कृष्ण बोले जो कोई एकादशी का उपवास करता है वह वैकुंठ को जाता है जो इस एकादशी के माहात्म्य का पाठ करता है उसे हजार गाय दान करने का पुण्य मिलता है तथा जो कोई इसे सुनता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है और उसके सभी पापों का नाश हो जाता है।
इस एकादशी की उत्पत्ति की कथा को उत्पन्ना एकादशी के दिन अवश्य ही पढ़ना चाहिए।