कार्तिक एकादशी
कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी अथवा कार्तिक एकादशी भी कहते हैं। इस दिन चातुर्मास की समाप्ति होती है और भगवान विष्णु इस दिन नींद से उठते हैं और ब्रह्मांड का कार्यभार अपने हाथों में ले लेते हैं। इस कारण से इस एकादशी को देवोत्थानी एकादशी अथवा देव उठनी एकादशी भी कहा जाता है।
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Kartik Ekadashi 2022 |
एकादशी व्रत कथा
कार्तिक महीने की एकादशी अत्यंत ही पुण्यमयी मानी गई है इस दिन जो व्यक्ति जागरण करके उपवास करता है वह सारे सुखों का उपभोग करके अंत में मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। इस एक एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को हज़ार अश्वमेध यज्ञों का और सौ राजसूय यज्ञों का फल प्राप्त होता है।
एक बार युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से पूछा हे प्रभु मुझे प्रबोधिनी एकादशी का महात्म्य बताइए।
श्री कृष्ण बोले इस संसार में जो भी वस्तु बहुत अधिक दुर्लभ है या जिसे पाना असंभव है उन वस्तुओं को भी प्रबोधिनी एकादशी के पुण्य से प्राप्त किया जा सकता है। यह एकादशी पापनाशिनी है जो बड़े से बड़े पाप को भी भस्म कर देती है।
जो भी इस एकादशी का जागरण के साथ व्रत करते हैं वह लोग अपने पितरों को गति प्रदान करते हैं तथा उनके पितृ भगवान विष्णु की शरण में चले जाते हैं। इस पृथ्वी पर जितने भी तीर्थ स्थान मौजूद है वे सभी इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के घर में निवास करते हैं।
जो भी व्यक्ति इस दिन भगवान विष्णु के नाम से स्नान, दान आदि करता है उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होता है और साथ ही इस व्रत के तप से मनुष्य के पिछले सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो व्यक्ति कार्तिक महीने में भगवान के नाम से शास्त्रों का पठन करवाता है या उनके नाम से कथा करवाता है वह अपनी सौ पीढ़ियों का उद्धार कर देता है।
जिन लोगों की कुंडली में पितृदोष है उन लोगों को इस एकादशी का व्रत अथवा श्री हरि विष्णु के नाम से कथा अवश्य करनी चाहिए और निर्धन और जरूरतमंद लोगों को अन्न अथवा वस्त्र का दान करना चाहिए। यह एक बहुत ही प्रभावी पितृदोष का उपाय है।
पूजा विधि:
Kartik Ekadashi के दिन प्रातकाल उठकर स्नान करना चाहिए और उसके बाद इन मंत्रों द्वारा भगवान श्री हरि विष्णु को जगाना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है।
मंत्र
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद उत्तिष्ठत गरुड़ध्वज।
उत्तिष्ठत कमलाकांत त्रैलोक्यमंगलं कुरु।।
उत्तिष्ठत कमलाकांत त्रैलोक्यमंगलं कुरु।।
अर्थ: हे गोविंद उठिए उठिए, हे गरुड़ध्वज उठिए,
हे कमलाकांत नींद को त्याग दीजिए और इस जगत का मंगल कीजिए
इस दिन विष्णु जी की फल, फूल, कुमकुम और कपूर आदि से पूजा करनी चाहिए। शंख में जल भरकर विष्णु जी का अभिषेक करना चाहिए और उन्हें अर्घ्य देना चाहिए। जितने भी तीर्थ स्थान हैं उन सभी में स्नान करने का जो पुण्य है वह इस दिन श्री हरि विष्णु जी का अनेक द्रव्यों द्वारा अभिषेक करने से करोड़ों गुना होकर प्राप्त होता है।
क्लिक करें : तुलसी विवाह विधि।
विष्णु अष्टक्षरीमंत्र
ॐ नमो नारायणाय।।
इस मंत्र का 108 बार जाप करें
प्रबोधिनी एकादशी के दिन जो भी व्यक्ति श्री हरि विष्णु को भक्ति भाव से तुलसी दल अर्पण करता है वह निश्चित ही मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है। जो हर रोज दर्शन, स्पर्श, नाम कीर्तन, स्तवन, अर्पण, सेवन, नित्य पूजन और नमस्कार करके तुलसी की पूजा करता है उसका अनेक कोटी युगों तक पुण्य फैला रहता है।
कार्तिक एकादशी पर जितने भी फल और फूल भगवान नारायण को अर्पण करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वह सिर्फ एक तुलसी का पत्ता अर्पण करने से प्राप्त हो जाता है। तुलसी पत्र इस प्रकार प्रार्थना करके अर्पण करना चाहिए।
तुलसी अर्पण मंत्र
तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिये। केशवार्थ चिनोमि त्वाम वरदा भव शोभने।।
त्वदंगसंभवैर्नित्ये पूजयामि यथा हरिम। तथा कुरु पवित्रांन्गि कलौ मल विनाशिनी।।
अर्थ: हे तुलसी तुम्हारा जन्म अमृत से हुआ है और तुम हमेशा ही केशव की प्रिय रही हो। कल्याणी, मैं भगवान की पूजा के लिए तुम्हारे पत्तों को चुनता हूँ। तुम मेरे लिए वरदायिनी सिद्ध हो।।
तुम्हारे श्रीअंगों से उत्पन्न पत्रों और मंजिरियों से श्रीहरि का पूजन कर सकूँ ऐसा मेरे लिए उपाय करो। है पवित्र अंगों वाली तुलसी तुम कली-मल का नाश करने वाली हो।।
इस मंत्र को पढ़कर भक्ति-भाव से श्री हरि विष्णु को जो भी तुलसी अर्पण करता है उसे पूजा करने का करोड़ों गुना फल प्राप्त हो जाता है। इसके बाद नैवैद्य अर्पण करें और लक्ष्मी-नारायण की आरती करके कपूर लगाएँ।
एकादशी का व्रत दिन-रात निराहार रहकर करना चाहिए। दोनों समय फलों का सेवन कर सकते हैं। द्वादशी के दिन इस व्रत का पारण करना चाहिए अर्थात उपवास छोड़ देना चाहिए।
द्वादशी के दिन पहले सुबह उठकर नहा धोकर श्री हरि विष्णु का पूजन करना चाहिए उन्हें दीप, धूप, गंध, तुलसी और नैवेद्य अर्पण करना चाहिए उसके तत्पश्चात दान करके भोजन ग्रहण करना चाहिए।
नोट: कोई भी व्रत या उपवास अपनी शारीरिक शक्ति के अनुसार ही करना चाहिए।
यदि द्वादशी तिथि में रेवती नक्षत्र का चतुर्थ चरण शुरू हो तो पारण नहीं करना चाहिए। खाना खाने के बाद या उसके अंत में अपने आप गल के गिरे हुए तुलसी के पत्ते का सेवन करना चाहिए इससे सभी पापों का नाश हो जाता है या बेर अथवा आंवला खाने से भी किसी भी प्रकार का दोष मिट जाता है।
FAQ's for Kartik Ekadashi Vrat
Q1. देवउठनी एकादशी कब है ?
A1. 12 नवंबर 2024 को है।
Q2. कार्तिक एकादशी पर किसकी पूजा की जाती है?
A2. भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा की जाती है।
Q3. तुलसी विवाह कब से शुरू होता है?
A3. कार्तिक एकादशी से शुरू होता है?
Q4. कार्तिक एकादशी क्यों मनाई जाती है?
A4. इस दिन भगवान विष्णु नींद से जागते हैं और चातुर्मास की समाप्ति होती है इसलिए कार्तिक एकादशी मनाई जाती है।
Q5. कार्तिक एकादशी करने से क्या होता है?
A5. कार्तिक एकादशी करने से हमारे सारे पापों का नाश हो जाता है और हमारे पितरों को मुक्ति मिलती हैं।
Q6. कार्तिक एकादशी पर विष्णु जी के किस मंत्र का जाप करना चाहिए?
A6. ॐ नमो नारायणाय इस अष्टक्षरी मंत्र का जाप करना चाहिए।
Q7. कार्तिक एकादशी पर विष्णु जी का अभिषेक कैसे करना चाहिए?
A7. शंख में सुगंधित जल भर कर उससे विष्णु जी का अभिषेक करना चाहिए।