मोक्षदायक त्रिस्पृशा व्रत | Trisparsha Ekadashi Vrat
परिचय:
त्रिस्पृशा व्रत सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला माना गया है। यह व्रत करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है और बड़े से बड़ा दुख दूर हो जाता है। 14 अक्टूबर 2024 दिन सोमवार को यह व्रत करना है।
इस व्रत के बारे में सबसे पहले महादेव जी ने समुद्र मंथन के समय देवताओं को बताया था। ऐसे तिथि जिसमें तीन तिथियों का स्पर्श एक ही दिन पर हो उसे त्रिस्पृशा कहते हैं। उदाहरण के लिए सूर्योदय के समय एकादशी हो, दिन भर द्वादशी हो और रात के अंतिम प्रहर में त्रयोदशी तिथि हो।
इसक महासंयोग को त्रिस्पृशा एकादशी कहा जाता है और इसी दिन त्रिस्पृशा एकादशी व्रत करना चाहिए। इस व्रत के फल से जन्म कुंडली के बुरे योगों और श्रापों से राहत मिलती है।
त्रिस्पृशा एकादशी के लाभ | Trisparsha Ekadashi Benefits
- यह व्रत सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करता है।
- सभी कर्मबंधनों से मुक्ति देने के कारण यह मोक्षदायक है।
- यह पितृदोष को दूर करता है।
- जो Trisprisha Ekadashi व्रत को करता है वह अपने माता-पिता और पत्नी के कुल का उद्धार कर देता है।
- त्रिस्पृषा एकादशी व्रत से 1000 एकादशीयों का व्रत करने का फल प्राप्त होता है।
- Trisparsha ekadashi व्रत अकेला ही सभी व्रतों के अनुष्ठान करने का फल प्रदान करता है।
त्रिस्पृशा एकादशी 2024 मुहूर्त
सोमवार, 14 अक्टूबर 2024
भारत के जिन शहरों में 14 अक्टूबर को सुबह 6.41 के पहले सूर्योदय हो रहा है वहाँ पर यह व्रत किया जा सकता है। इसलिए यह व्रत करने से पहले अपने शहर का सूर्योदय देख लें।
व्रत कथा
एक समय की बात है ब्रह्महत्या जैसे घोर पाप करने वाले लोगों द्वारा गंगा में स्नान करने के कारण गंगा जी दूषित हो गई थी तब उन्होंने श्री कृष्ण से पूछा हे गरुड़ध्वज! मुझे बताइए कि मेरे यह पाप कैसे दूर होंगे?
तब महादेव जी ने गंगा से कहा कि तुम त्रिस्पृशा व्रत का अनुष्ठान करो यह व्रत 100 करोड़ तीर्थों से भी अधिक शक्तिशाली व्रत है। इसकी शक्ति करोड़ों यज्ञों, व्रतों, दान, जप और होम से भी अधिक है। यह व्रत करने से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष जैसे चारों पुरुषार्थ प्राप्त हो जाते हैं।
हे गंगा त्रिस्पृशा व्रत जिस किसी भी महीने में आए वह कृष्ण पक्ष हो या शुक्ल पक्ष उसे जरूर करना चाहिए। जब एक ही दिन एकादशी, द्वादशी और रात के आख़िरी प्रहर में त्रयोदशी हो उसे त्रिस्पृशा कहते हैं। इस व्रत के फल से तुम्हारे सभी पाप दूर हो जाएँगे।
सुबह नहा कर शरीर को शुद्ध करके एकादशी के दिन यह व्रत करना चाहिए। द्वादशी विष्णु जी को बहुत ही अधिक प्रिय है। उनकी आज्ञा से इसका व्रत जरूर करना चाहिए किंतु स्मरण रहे की एकादशी में दशमी का वेध नहीं होना चाहिए क्योंकि इसे वे क्षमा नहीं करते।
इस प्रकार श्री माधव ने गंगा जी को त्रिस्पृशा व्रत के बारे में बताया और उसके बाद गंगा जी ने उनसे व्रत की विधि के बारे में पूछा।
पूजा विधि
अपने सामर्थ्य अनुसार विष्णु जी की प्रतिमा बना ले इसके बाद तांबे के बर्तन में तिल भर कर रखें और पानी से भरे हुए एक कलश की स्थापना करें अगर संभव हो तो उसमें 5 रत्न रखें और कलश को फूलों की माला से सज़ाएँ और फिर भगवान दामोदर को स्थापित करें और स्नान कराकर चंदन चढ़ाएँ।
तत्पश्चात भगवान को वस्त्र पहनाएँ और फूल चढ़ाकर मंत्रों सहित तुलसी दल से पूजा करें। फिर उन्हें छाता और जूतियाँ अर्पण करें। इसके बाद उन्हें नैवेद्य फल और यज्ञोपवित अर्पण करें और इस प्रकार पूजा करें। जिन अंगों की पूजा जिस मंत्र द्वारा करनी है उन अंगों के साथ उनके मंत्र लिखे गए हैं
दामोदराय नमः से चरणों की
माधवाय नमः से दोनों घुटनों की
कामप्रदाय नमः से गुह्य भाग की
वामनमूर्तये नमः से कमर की
पद्मनाभाय नमः से नाभि की
विश्वमूर्तये नमः से पेट की
ज्ञानगम्याय नमः से ह्रदय की
वैकुंठगामिने नमः से गले की
सहस्त्रबाहवे नमः से बाजुओं की
योगरूपिणे नमः से आंखों की
सहस्त्रशीर्ष्णे नमः से सिर की
माधवाय नमः से सभी अंगों की
मंत्र
ओम नमो भगवते वासुदेवाय।।
(108 बार इस मंत्र का जाप करें)
इस प्रकार पूजा करने के बाद शंख में पानी भरकर उसके ऊपर नारियल रख लें और उस पर एक धागा लपेट लें और दोनों हाथों में शंख आदि लेकर यहां प्रार्थना करें:
“हे जनार्दन अगर आप बस याद कर लेने भर से मनुष्य के पाप हर लेते हैं तो मेरे बुरे सपनों, अपशकुनों, मानसिक चिंताओं, नर्क के डर और दुर्गति से होनेवाले कष्टों को हर लीजिए। महादेव मुझे इस लोक और परलोक में जो डर है उनसे मेरी रक्षा कीजिए तथा यह अर्घ्य ग्रहण कीजिए। आपको नमस्कार है। मैं हमेशा आपकी भक्ति करता रहूँ।”
इसके बाद भोग लगाकर आरती करें और फिर जागरण करें और रात के अंतिम प्रहर में दान के बाद भोजन करें द्वादशी में उपवास छोड़ने से व्रत का फल हजार गुना हो जाता है।