दीपावली और लक्ष्मी पूजन
दिवाली का दूसरा नाम दीप मालिका उत्सव भी है जिसका अर्थ होता है अपने घर के आंगन में चारों ओर दीपक जलाकर दीपों की एक श्रृंखला तैयार करना।
दिवाली के दिन दीपक जलाने के बहुत सारे कारण बताए गए हैं जैसे कि, यह पर्व अमावस्या के दिन आता है और उस दिन के घोर अंधकार को दूर करने के लिए दिए जलाकर प्रकाश किया जाता है। एक और कारण यह भी है की पितरों को रास्ता दिखाने के लिए उजाला किया जाता है ताकि वह भटक न जाएँ।
इस लेख के द्वारा निम्नलिखित बातों पर प्रकाश डाला गया है:
- दिवाली कथा
- लक्ष्मी पूजन मुहूर्त
- लक्ष्मी पूजन विधि
- लक्ष्मी जी के मंत्र
दिवाली पौराणिक कथा
कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि को श्री हरि विष्णु ने वामन अवतार का रूप लेकर राजा बलि से तीन पग में उसका संपूर्ण राज्य ले लिया और उसे पाताल में भेज दिया और उस ही दिन बलि ने उनसे यह वरदान मांगा था कि आज से लेकर तीन दिनों तक हर साल इस धरती पर मेरा शासन रहेगा।
इन तीन दिनों में जो भी व्यक्ति पृथ्वी पर पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से दीपदान करेगा उसके घर में आपकी पत्नी लक्ष्मी जी स्थाई रूप से विराजमान रहें। विष्णु जी ने असुर राज को चतुर्दशी से अगले तीन दिनों तक का राज्य दे दिया इसलिए इन दिनों में दीपक जलाकर उत्सव मनाना चाहिए।
मिट्टी के दिए का आध्यात्मिक महत्व
कार्तिक अमावस्या पर मंदिरों में, घरों में, चौराहों पर, पीपल और बरगद के पेड़ो के नीचे, घर की बाहर की दीवारों पर, चौपाल पर दीए जलाना चाहिए इस अवसर पर मिट्टी के दीयों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।
यह ब्रह्मांड पंच तत्वों से बना है और हमारा शरीर भी तथा दोनों का ही सुचारू रूप से संचालन करने के लिए पंच तत्वों का होना अति आवश्यक है। पंच-तत्व इस प्रकार हैं:
धरती, वायु, जल, आकाश और अग्नि।
दीया बनाने के लिए पहले मिट्टी को लिया जाता है जो धरती तत्व का प्रतीक है। बाद में उसमें जल मिलाया जाता है और उसे दिए का आकार दिया जाता है। फिर उसे पकाया जाता है और उसमें घी अथवा तेल डालकर अग्नि को प्रज्वलित किया जाता है जिसके लिए वायु अथवा प्राणवायु बहुत ही आवश्यक है और फिर इस दीपक का आकाशदीप के रूप में दीपदान किया जाता है।
इस प्रकार मिट्टी का दिया ना सिर्फ पंचतत्व का प्रतीक है बल्कि इस पूरी सृष्टि का भी प्रतीक है और हमें पंच तत्वों के महत्व को समझाता है।
श्री हरि विष्णु ने सभी देवताओं को राजा बलि की चंगुल से छुड़ा लिया और उसी समय माता लक्ष्मी ने भी राजा बलि का साथ छोड़ दिया और लक्ष्मी जी देवताओं की ओर आ गई और तभी से इस दिन पर माता लक्ष्मी का पूजन किया जाने लगा।
समुद्र मंथन का दिवाली के पर्व से एक अटूट संबंध है दीपावली में पाँच दिवस अलग-अलग प्रकार से पूजा की जाती है जैसे कि:
चतुर्दशी को काली
अमावस्या को लक्ष्मीजी
प्रतिपदा को राजा बली
द्वितीया को यम की पूजा एवं भाई दूज
धन्वंतरि, काली एवं महालक्ष्मी जी समुद्र मंथन से ही प्रकट हुए हैं। महालक्ष्मी जी जब समुद्र से प्रकट हुई तब उन्हें देखकर सारे देवता, असुर, मनुष्य सभी मोहित हो उठे और उन्हें पाने की इच्छा करने लगे। वे चंपा के सफेद पुष्प की तरह प्रतीत हो रही थी और वे अपने भक्तों पर कृपा करने के लिए तत्पर थी।
ऐसी जगत जननी माँ महालक्ष्मी की इंद्र देव स्तुति करने लगे और यह स्तुति स्तोत्रराज कहलाती है। इस स्तोत्र से पहले इंद्र ने गणेश, सूर्य, अग्नि, विष्णु, शिव और पार्वती जी की पूजा की। दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन के समय जो भी व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है वह कुबेर के समान धनी हो जाता है। स्तोत्र को पढ़ने के लिए नीचे दी गई लिंक देखें।
क्लिक करें : महालक्ष्मी स्तोत्र
कार्तिक अमावस्या को सुबह उठकर स्नान करके शुद्ध हो जाना चाहिए। उसके बाद कुतप काल में पितरों का तर्पण तथा पार्वण श्राद्ध करना चाहिए। अमावस्या तिथि को हमारे पितृ पृथ्वी पर आते हैं यह तिथि उन्हें अति प्रिय होती है और पितरों से जुड़े सभी कार्य इस तिथि पर करने का विधान है।
पूजा का मुहूर्त
यदि चतुर्दशी तिथि के दिन ही प्रदोष काल में अमावस्या तिथि स्वाति नक्षत्र के साथ विद्यमान हो तो उसी दिन दिवाली मनाई जानी चाहिए। पूजा के लिए सबसे अच्छा मुहूर्त प्रदोष काल में माना गया है जो स्थिर लग्न अर्थात वृषभ लग्न के साथ पड़ता हो। बहुत से लोग निशित काल में भी माँ लक्ष्मी की पूजा आराधना करते हैं।
दिन: 31 अक्तूबर 2024, गुरुवार
(यह मुहूर्त नागपुर के स्थानीय समयानुसार है)
(यह मुहूर्त नागपुर के स्थानीय समयानुसार है)
प्रदोष काल शाम 5.38 से 8.10 pm तक होगा।
स्थिर अर्थात वृषभ लग्न का समय 6:26 से लेकर 8:25 pm
इस दौरान हमें लक्ष्मी पूजन करना चाहिए।
लक्ष्मी पूजन पर सिद्ध की जाने वाली चमत्कारी चीजें
- एकाक्षी नारियल
- दक्षिणावर्ती शंख
- कौड़िया
- गोमती चक्र
- श्री यंत्र
लक्ष्मी जी की प्रिय वस्तुएँ
- कमल का फूल
- कमलगट्टा
- कमलगट्टे की माला
- स्फटिक की माला
- खीर का नैवेद्य
पूजा विधि
सबसे पहले नहा धोकर स्वच्छ वस्त्र पहन कर पूरब की ओर मुंह करके बैठ जाएं फिर चौकी पर साफ लाल कपड़ा बिछा लें। उसके बाद उस पर रंगोली बना ले और थोड़े से चावल रख ले और इस जगह पर गंगाजल या पंचामृत से छीटें मारे फिर चौकी पर गणेश जी की मूर्ति रखें अथवा फोटो लगाएं तत्पश्चात गणेश जी की दाहिनी ओर लक्ष्मी जी की मूर्ति रखें।
इसके बाद चौकी पर एक तांबे का कलश रखे उसमें गंगा जल तीर्थ का जल, सिक्का आदि रख लें और एक नारियल पर धागा बांधकर उस नारियल को कलश पर रख लें।
फिर लक्ष्मी स्वरूप वस्तुएं जैसे कि सिक्के, नोट, आभूषण आदि को पूजा स्थान पर रखें फिर गणेश जी से शुरू करके सभी की षोडशोपचार पूजा करें। इसके बाद गणपति स्तोत्र या मंत्र पढ़ें और नीचे दिए गए लक्ष्मी जी के मंत्र का 108 बार जाप करें और एक बार स्तुति करें तत्पश्चात नैवेद्य अर्पित करें एवं कपूर आरती करें अंत में क्षमा प्रार्थना करें।
चमत्कारी मंत्र एवं स्तुति
श्री गणेशाय नमः।।
ॐ नमो नारायणाय।।
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो महालक्ष्म्यै स्वाहा।।
स्तुति
त्वं ज्योतिः श्री रविश्चंद्रो विद्युत्सौवर्णतारकः।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपज्योतिः स्थिता तु या।।
या लक्ष्मीर्दिवसे पुण्ये दीपावल्यां च भूतले।
गवां गोष्ठे तु कार्तिक्यां सा लक्ष्मीर्वरदा मम।।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपज्योतिः स्थिता तु या।।
या लक्ष्मीर्दिवसे पुण्ये दीपावल्यां च भूतले।
गवां गोष्ठे तु कार्तिक्यां सा लक्ष्मीर्वरदा मम।।
नोट: प्रत्येक परिवार में पूजा करने का एक अलग क्रम अथवा पद्धति होती है यथासंभव उसका ही अनुसरण करना चाहिए।
दान: दिवाली के दिन यथाशक्ति निर्धन और जरूरतमंद लोगों को अन्नदान, वस्त्र दान या काला कंबल दान करना चाहिए। इस दिन जो भी व्यक्ति राजा बलि के नाम से दान देता है उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। दान देने के पश्चात मनुष्य को भोजन करना चाहिए।
सबसे अंत में घर की महिलाओं को चाहिए कि मध्य रात्रि में पूरे घर घर में सूप बजाते हुए घूमे और आंगन तक आए और घर से दरिद्रता या अलक्ष्मी को घर से बाहर कर दें कई प्रांतों में ऐसा रिवाज है कि मध्य रात्रि में घर में झाड़ू लगाई जाती है और जो कचरा होता है उसे दरिद्रता का स्वरूप मानकर घर से बाहर कर दिया जाता है एवं घर में लक्ष्मी को प्रवेश करने के लिए प्रार्थना की जाती है।
FAQ's for Diwali Lakshmi Puja
Q1. दिवाली कब मनाई जाती है ?
A. अमांत कैलेंडर के अनुसार आश्विन महीने की अमावस्या तिथि पर और पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीने की अमावस्या तिथि पर।
Q2. दिवाली के दिन किस मुहूर्त पर लक्ष्मी पूजन करना चाहिए ?
A. शाम के समय जब प्रदोष काल और वृषभ लग्न या स्थिर लग्न हो उस समय लक्ष्मी पूजन करना चाहिए।
Q3. क्या मध्य रात्रि में लक्ष्मी पूजन कर सकते हैं ?
A. हां मध्य रात्रि में निशीथ काल में लक्ष्मी जी का पूजन किया जा सकता है।
Q4. दिवाली लक्ष्मी पूजा का समय कौन सा है ?
A. शाम को 6:26 से 8:25 तक।
Q5. दिवाली के समय कौन सा स्तोत्र पढ़ना चाहिए ?
A. श्री सूक्त और कनकधारा स्तोत्र पढ़ना चाहिए।
खूप छान माहिती 🙏🙏
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण माहिती, संम्रभ होता तारखे बद्दल दूर झाला.
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