मकर संक्रांति
परिचय
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प्रिय पाठकों जैसा कि हम सभी जानते हैं मकर संक्रांति अक्सर 14 या 15 जनवरी के दिन आती है जो हिंदू पंचांग के अनुसार पौष या माघ के महीने में पड़ती है। आइए सबसे पहले यह जानते हैं कि मकर संक्रांति का क्या अर्थ होता है?
मकर संक्रांति दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें “मकर” राशिचक्र की दसवीं राशि है और संक्रांति का अर्थ होता है जब सूर्य एक राशि से निकल कर दूसरे राशि में प्रवेश करता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार इसी दिन से उत्तरायण की शुरुआत होती है।
संक्रांति पर किए जाने वाले उपायों के बारे में जानने के लिए क्लिक करें : मकर संक्रांति के महाउपायमुहूर्त
15 जनवरी 2019
इस वर्ष14 जनवरी को रात लगभग 8:00 बजे के करीब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करेंगे और क्योंकि भारतीय समय के अनुसार सूर्य का राशि संक्रमण सूर्यास्त के बाद हो रहा है इसलिए मकर संक्रांति अगले दिन यानी कि 15 जनवरी को मनाई जाएगी।
पुण्य काल
ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार जब सूर्यास्त के बाद सूर्य राशि प्रवेश करके मकर राशि में जाता है तो अगले दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त होने तक पूरे दिन के लिए पुण्य काल माना गया है। इस दौरान हमें जप, दान, अर्घ्य, व्रत और तर्पण जैसे कार्य करने चाहिए।
इस वर्ष 15 जनवरी 2019 को सुबह सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पुण्य काल रहेगा। इस समय में किया गया कोई भी जप, दान या मंत्र जाप लाखों गुना अधिक पुण्य प्रदान करता है।
ग्रंथों में ऐसा बताया गया है की मकर संक्रांति का विशेष पुण्य काल 16 दंड का होता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो लगभग 5 से 6 घंटों का यानी 15 जनवरी को सुबह सूर्योदय से लेकर अगले पाँच साडे पाँच घंटे विशेष पुण्य काल रहेगा जिसमें किसी भी अच्छे कर्म का फल अनेकों गुना हो जाएगा।
संक्रांति का आगमन
इस वर्ष मकर संक्रांति पौष महीने के शुक्लपक्ष के अश्विनी नक्षत्र में बव करण में सिद्ध योग में सोमवार के दिन अष्टमी तिथि को हो रही है। यह संक्रांति सफेद वस्त्र धारण कर सिंह पर बैठकर हाथ में भुशुण्डि लिए हुए कस्तूरी का लेप लगाकर अन्न का भक्षण करते हुए आएगी। जाति से यह देव होगी तथा इसके हाथ में नागकेसर का फूल होगा। इस संक्रांति का नाम ध्वांक्षी है।
जन्म नक्षत्र अनुसार शुभ अशुभ फल
यह संक्रांति व्यापारियों के लिए अच्छे फल प्रदान करेगी क्योंकि यह संक्रांति बव करण में हो रही है इसलिए सूर्य बैठे-बैठे एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण करेंगे इस कारण अन्नादी के भाव सम यानी ज्यों के त्यों रहने की संभावना है।
जन्मनक्षत्र संक्रांति का परिणाम
रेवती, अश्विनी, भरणी यात्रा
कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा सुख
आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य सुख
अश्लेशा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी रोग
उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा वस्त्र प्राप्ति
स्वाति, विशाखा, अनुराधा वस्त्र प्राप्ति
जेष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा नुकसान
उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा आर्थिक लाभ
शतभिषा, पूर्वभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद आर्थिक लाभ