अक्षय नवमी |आँवला नवमी | कुष्मांड नवमी
नमस्कार श्रोताओं सबसे पहले आप सभी को दिवाली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं और आशा करता हूं कि आप सबकी दिवाली बहुत अच्छी रही होगी साथ ही बहुत समय बाद नया आर्टिकल लिख रहा हूं इसलिए क्षमा चाहता हूं।
प्रिय पाठकों आज का आर्टिकल अक्षय नवमी के बारे में है जो 10 नवंबर 2024 दिन रविवार को है और इस दिन एक बहुत ही दुर्लभ संयोग आ रहा है क्योंकि इसी दिन रवि योग भी है जो इस दिन को और भी ज्यादा खास बना देता है।
तो आइए सबसे पहले जानते हैं कि अक्षय नवमी क्या है ? यह कब पड़ती है और इसका क्या महत्व है ? दोस्तों हिंदू धर्म में ऐसा बताया गया है कि पृथ्वी पर अभी तक चार युग हुए हैं सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग और जिस दिन या जिस तिथि पर किसी भी युग की शुरुआत होती है उस तिथि को युगादी तिथि कहते हैं और उस तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है।
जिस तरह अक्षय तृतीया पर एक युग की शुरुआत हुई थी उसी प्रकार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर सतयुग की शुरुआत हुई थी और इसी युगादी तिथि को अक्षय नवमी कहा जाता है इसे अक्षय नवमी इसलिए कहा जाता है कि इस दिन किया हुआ कोई भी दान पुण्य अच्छा कर्म करोड़ों गुना अधिक पुण्य प्रदान करता है।
तो आइए जानते हैं कि इस दिन पर हमें क्या करना चाहिए किस तरह पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले सुबह स्नान करके हमें शुद्ध हो जाना चाहिए उसके बाद हमें आंवले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। आंवले के पेड़ में जल और ढूध चढ़ाना चाहिए। आंवले के पेड़ को धागा बांधते हुए उसकी 108 परिक्रमा करनी चाहिए तथा आंवले के मंत्र का जाप करना चाहिए।
ॐ धात्र्यै नमः
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक महीने में आंवले की पूजा करना बहुत ही अधिक पुण्यदाई माना गया है। इसीलिए आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करना चाहिए। साथ ही इस पेड़ के नीचे दूसरों को भोजन करवाना चाहिए और स्वयं भी भोजन करना चाहिए और अपनी क्षमता के अनुसार वस्त्र, कंबल, अन्न आदि का दान करना चाहिए।
जिस तरह भगवान श्री हरि विष्णु को कार्तिक महिना बहुत प्रिय है उसी प्रकार उन्हें आंवला भी बहुत प्रिय है इसलिए इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करना बहुत अधिक फलदायी माना गया है साथ ही युगादी तिथि होने के कारण यही फल अनेको गुना बढ़ जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप भी करना चाहिए जैसे द्वादाक्षरी मन्त्र और समस्त पाप नाशक स्तोत्र जिससे समस्त पापों का नाश हो जाता है और आंवले की छांव में बैठकर किया गया कोई भी पुण्य करोड़ों गुना फल प्रदान करता है।
साथ ही साथ जो लोग पितृदोष से परेशान हैं उन लोगों को इस तिथि पर आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर अपने पितरों के लिए पिंडदान करना चाहिए और साथ ही उन्हें दीपदान भी करना चाहिए इससे पिशाच यौनि में गए हुए पितर भी वहां से मुक्त हो जाते हैं और उन्हें सद्गति मिल जाती है।