श्राद्ध कैसे करें
एस्ट्रो आर्टिकल के सभी पाठकों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार आज मैं एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर आर्टिकल लिख रहा हूं। लोग अक्सर इस बात को लेकर असमंजस में रहते हैं कि श्राद्ध कैसे करना चाहिए क्योंकि आजकल की भागदौड़ वाली जिंदगी में लोगों के पास बहुत कम समय होता है और समय के अभाव के कारण या पति पत्नी दोनों ही काम पर जाने के कारण श्राद्ध ठीक से नहीं कर पाते या उसे लेकर हमेशा दुविधा होती है। आज हम इसी बारे में जानेंगे कि श्राद्ध कब और कैसे किया जाना चाहिए।
सबसे पहला प्रश्न यह आता है कि श्राद्ध क्यों किया जाता है जिसके उत्तर में, मैं यह बताना चाहूंगा कि जिस तरह जीवित होने पर हमें भोजन और पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार इस संसार को छोड़ देने के बाद आत्मा को शांति एवं सद्गति मिलने के लिए श्राद्ध और तर्पण की आवश्यकता होती है। ऐसा कहा गया है कि जब हम किसी मृत व्यक्ति का श्राद्ध 3 सालों तक नहीं करते हैं तो उस व्यक्ति की आत्मा पिशाच योनि में चली जाती हैं और आगे चलकर यही बात पितृ दोष का कारण बनती है जिससे पूरे परिवार को कष्ट सहना पड़ता है।
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श्राद्ध कब करना चाहिए
दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न है की श्राद्ध कब करना चाहिए ? इसके जवाब में मैं यह कहना चाहूंगा कि वर्ष में कम से कम तीन बार श्राद्ध किया जाना चाहिए। श्राद्ध करने के लिए दो सबसे अच्छी तिथियां है: अक्षय तृतीया और सर्व पितृमोक्ष अमावस्या । अक्षय तृतीया वैशाख माह में आती है जबकि अमांत कैलेंडर के अनुसार सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या भाद्रपद महीने में आती है। इन दो तिथियों के अलावा वर्ष श्राद्ध करना भी आवश्यक है। वर्ष श्राद्ध की तिथि के बारे में और अधिक जानने के लिए नीचे दी गई हुई लिंक पर क्लिक करें।
श्राद्ध किसे करना चाहिए
तीसरा महत्वपूर्ण प्रश्न आता है कि श्राद्ध किसे करना चाहिए या श्राद्ध कौन कर सकता है? इस प्रश्न के उत्तर में मैं यह कहना चाहूंगा कि किसी भी व्यक्ति का पुत्र उसका श्राद्ध कर सकता है यदि पुत्र ना हो तो उस व्यक्ति की पत्नी भी उसका श्राद्ध कर सकती हैं या उस व्यक्ति की पुत्री भी उसका श्राद्ध कर सकती है या फिर उसकी पुत्री का पुत्र जिसे कि हम दौहित्र के नाम से जानते हैं वह भी श्राद्ध कर सकता है। इसी प्रकार किसी स्त्री का श्राद्ध भी उसका पति, पुत्र, पुत्री या पुत्री का पुत्र कर सकता है। कई बार लोग अक्सर यह सवाल पूछते हैं कि अगर किसी व्यक्ति के 2 पुत्र हैं तो क्या सिर्फ बड़े पुत्र को ही श्राद्ध का अधिकार है नहीं ऐसा नहीं है अगर किसी व्यक्ति के 2 पुत्र हैं और दोनों अलग-अलग घरों में रहते हैं या एक घर में रहते हुए भी दोनों के घर का चूल्हा चौका अलग-अलग है या दोनों अलग-अलग कमाई करते हैं और अपना अपना खर्चा चलाते हैं तो वह दोनों को ही श्राद्ध करने का अधिकार है अगर कोई संयुक्त परिवार मतलब जॉइंट फैमिली में रहता हो तो उस घर में जो व्यक्ति घर का खर्च चलाता है उसे श्राद्ध करने का अधिकार होता है फिर वह छोटा पुत्र हो या बड़ा पुत्र।
श्राद्ध करने का सही समय
अब सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है यह आता है कि श्राद्ध करने का सही समय क्या होता है इसके उत्तर में मैं यह कहना चाहूंगा कि श्राद्ध करने की शुरुआत हमें कुतुप काल में करनी चाहिए अब कुतुप काल का अर्थ होता है जो समय लगभग 11:30 या 11:45 बजे से शुरू होकर 12:15 - 12:30 बजे तक रहता है। इस समय में श्राद्ध की शुरुआत हो जानी चाहिए और मध्यान्ह काल समाप्त होने के पहले श्राद्ध की सभी विधियां पूरी हो जानी चाहिए यहां तक कि श्राद्ध कर्म करने के बाद किया गया दान एवं तर्पण भी मध्यान्ह काल समाप्त होने के पूर्व हो जाना चाहिए। मध्यान्ह काल का समय लगभग दोपहर के 1:30 बजे के आसपास तक होता है यह समय दिन की लंबाई के अनुसार कुछ कम ज्यादा हो सकता है लेकिन एक मोटा अंदाज मानकर हमें श्राद्ध से संबंधित सभी गतिविधियां दोपहर के 12:00 बजे से लेकर 2:30 बजे के बीच में कर लेना चाहिए।
श्राद्ध कैसे करना चाहिए
अब इसके बाद एक और प्रश्न आता है कि श्राद्ध कैसे करना चाहिए इसके उत्तर में मैं यह कहना चाहूंगा कि हर एक परिवार में श्राद्ध करने की पद्धति थोड़ी भिन्न होती है लेकिन ज्यादातर बातें एक समान ही होती है। श्राद्ध शुरू करने से पहले हमें तीन बार स्वधा देवी के नाम का स्मरण करना चाहिए जैसे :
या स्वधा देवी के इस मंत्र का जाप कर लेना चाहिए संभव हो तो स्वध देवी के स्तोत्र का पाठ भी करना चाहिए इससे श्राद्ध करते समय हुई कोई भी भूल माफ हो जाती है।
मंत्र
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।
श्राद्ध करने के लिए हम अक्सर अपने पितरों के फोटो लगाकर उनके सामने पात्र में अन्न एवं जल परोसते हैं और फिर उन्हें प्रार्थना करते हैं कि वह सूक्ष्म रूप से आकर इस अन्न और जल को ग्रहण करें अगर हम ऐसा नहीं करना चाहते तो हम जिन पितरों के लिए श्राद्ध करने वाले हैं उनकी जगह पर किसी व्यक्ति को बुलाकर उन्हें अपना पितर मान कर अन्न एवं जल ग्रहण करने के लिए कह सकते हैं। जैसे उदाहरण के लिए अगर आप अपने माता पिता का श्राद्ध करना चाहते हैं तो किसी वृद्ध जोड़े को बुलाकर उन्हें अपने माता पिता की जगह बिठाकर उनका विधिवत पूजन करके उन्हें अन्न एवं जल ग्रहण करने को कह सकते हैं और यह प्रार्थना कर सकते हैं की इनके माध्यम से मेरे माता और पिता को अन्न एवं जल की प्राप्ति हो इसी तरह अन्य लोगों के लिए भी उतनी ही संख्या में लोगों को बुलाकर श्राद्ध कर सकते हैं।
श्राद्ध करने के कुछ नियम
अगला प्रश्न है यह आता है कि क्या श्राद्ध करने के कुछ नियम होते हैं? इसके उत्तर में मैं यह कहना चाहूंगा कि जी हां श्राद्ध करने के अपने कुछ नियम होते हैं जैसे कि जो व्यक्ति श्राद्ध करने वाला हो उसे श्राद्ध से 1 दिन पहले और श्राद्ध वाले दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना अति आवश्यक है दूसरी बात जो व्यक्ति श्राद्ध करता है उस दिन उसे रात्रि में भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए हां अगर स्वास्थ्य ठीक नहीं हो और वह उपवास नहीं कर सकता तो फिर वह भोजन कर सकता है। जब भी हम पितरों से संबंधित कोई कार्य करते हैं जैसे श्राद्ध तर्पण इत्यादि उस वक्त हमें अपना चेहरा दक्षिण की ओर रखना चाहिए यदि हम घर में अपने पितरों के फोटो लगाकर उनके सामने श्राद्ध करते हैं तो हमें उनके फोटो को दक्षिण दीवाल पर रखना चाहिए और श्राद्ध करते समय हमारा चेहरा दक्षिण की ओर होना चाहिए। अगर हम श्राद्ध के दिन हम किसी को खाना खाने के लिए उनकी जगह बुलाते हैं तो भी हमारा मुख दक्षिण की ओर होना चाहिए और मेहमानों का मुख उत्तर की ओर होना चाहिए।
श्राद्ध में प्रयोग होने वाली वस्तु
अगला प्रश्न आता है क्या श्राद्ध में प्रयोग होने वाली कुछ वस्तुओं का विशेष महत्व है इसके उत्तर में मैं यह कहना चाहूंगा कि जी हां श्राद्ध में कुछ ऐसी वस्तुएं होती हैं जिनका बहुत ही विशेष महत्व होता है जैसे कि श्राद्ध में तुलसी का बहुत अधिक महत्व माना गया है दूसरी महत्वपूर्ण वस्तु है काले तिल और तिलों से बना हुआ तिलोदक। काले तिल जब पानी में मिलाए जाते हैं तो उससे तिलोदक बनता है। उसके बाद अगली महत्वपूर्ण वस्तु है गोपी चंदन पितरों के फोटो पर गोपी चंदन या जिसे हम सफेद चंदन कहते हैं उससे तिलक लगाना चाहिए। श्राद्ध में सुगंधित सफेद फुल और चांदी के बर्तन उपयोग करने का बहुत अधिक महत्व माना गया है अगर हम चांदी के बर्तन उपयोग में नहीं ला सकते तो एक छोटी सी चांदी की कटोरी या छोटा सा चांदी का चम्मच हमें पितरों को भोजन परोसने के लिए उपयोग में लाना चाहिए जिससे वह बहुत अधिक तृप्त हो जाते हैं। मैं एक और महत्वपूर्ण बात बताना चाहूंगा की श्राद्ध में चावल से बनी हुई खीर एवं मूंग की दाल से बने हुए बड़े अवश्य रखने चाहिए इससे पितर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।
श्राद्ध में वर्जित
अब अगला प्रश्न आता है क्या ऐसी कुछ बातें हैं जो श्राद्ध में करना वर्जित माना गया है इसके उत्तर में मैं कहना चाहूंगा कि ऐसी बहुत सी बातें हैं जो श्राद्ध में हमें नहीं करनी चाहिए जैसे कि श्राद्ध के भोजन में कभी भी बैगन की सब्जी का प्रयोग नहीं करना चाहिए कभी भी किसी और से धन उधार लेकर श्राद्ध या दान बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे श्राद्ध और दान का पुण्य उस व्यक्ति को चला जाता है जिससे उधार लिया गया हो और कभी भी किसी भी रजस्वला स्त्री को श्राद्ध का भोजन नहीं पकाना चाहिए यदि कभी ऐसा हो कि पुरुष को खाना बनाना नहीं आता और उसकी पत्नी रजस्वला हो ऐसे समय में उस पुरुष को चाहिए कि वहां नहा धोकर दुकान से खाने का सामान लेकर जैसे कि गेहूं चावल नमक सब्जी तेल इस तरह की चीजें ले और बाहर ही किसी व्यक्ति को यह सब चीजें दान कर दें इसे भी शास्त्र में श्राद्ध ही माना गया है।
श्राद्ध करने के बाद हमें जल से या काले तिलों से तर्पण करना चाहिए। जिस श्राद्ध में पिंडदान किया जाता है उस श्राद्ध को सपिंडक श्राद्ध कहते हैं। पके हुए चावल और काले तिलों को एक निश्चित प्रमाण में मिलाकर उसका एक पिंड तैयार किया जाता है और फिर उस पिंड को अपने पितरों को अर्पण किया जाता है लेकिन एक बात यहां बहुत मायने रखती है की कर्मकांड का पूरा ज्ञान होने पर ही पिंडदान ठीक से कर सकते हैं या फिर किसी कर्मकांडी ब्राह्मण की सहायता से पिंडदान किया जा सकता है। श्राद्ध खत्म हो जाने के बाद भी हमें पितृ स्तोत्र का पाठ करना चाहिए उसके बाद स्वधा देवी का तीन बार नाम लेकर श्राद्ध का समापन करना चाहिए।
भूपेश जी आप का आभार व अभिनन्दन .. श्राद्ध विधि पर आपका लेख अत्यंत लाभकारी हैं | मुझे हमेशा मन में शंका व प्रश्न रहते थे की हम श्राद्ध पूजा में कहीं कोई गलत या अनावश्यक विधि तो नहीं कर रहें हैं ? लेकिन आपके लेख की महत्पूर्ण जानकारी से बहुत सारे प्रशनों के उत्तर मिल गए , धन्यवाद |
ReplyDeleteखूप छान माहिती 🙏🙏
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