Mangal Chandi Stotra
देवी भगवती का अत्यंत प्रभावी एवं मंगलमय चंडी स्वरूप जो सदा संसार को मंगल प्रदान करता है उस स्वरूप को मंगलचंडी कहते हैं। मंगलचंडी देवी की स्तुति सर्वप्रथम संसार में देवाधिदेव महादेव ने मंगलवार को की थी और स्वयं मंगल ग्रह की इष्ट देवी होने के कारण भी उन्हें मंगलचंडि देवी कहा जाता है।
अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल दोष हो तो इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए किसी भी प्रकार के मंगल दोष के निवारण के लिए यह स्तोत्र बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है और यह मंगल दोष तथा मातृ दोष के उपायों में से एक है।
मंगलचंडी देवी की पूजा एवं उनके स्तोत्र का पाठ मंगलवार को किया जाना बहुत ही अधिक शुभ और लाभकारी होता है और मंगलवार के दिन पूजा करने पर मां अपने साधकों को मंगलमय सुख प्रदान करती हैं।
इस स्तोत्र का पाठ किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार या नवरात्रि के मंगलवार से शुरू करना बहुत अच्छा रहता है।
नीचे दिया गया स्तोत्र श्रीमद् देवी भागवत पुराण से लिया गया है यह देवी पुराण के नवम स्कंध के 47 वें अध्याय में दिया गया है। नीचे दिया गया मंत्री देवी मंगलचंडी का मूल मंत्र है। यह 21 अक्षर का मंत्र है और यह साधक को सभी मनोवांछित फल एवं सिद्धियां प्रदान करता है इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए इसका 10 लाख बार जाप करना आवश्यक है।
पूजा विधि: सुबह स्नान आदि से शुद्ध होने के बाद विधिपूर्वक माता के सामने धूप, दीप, पुष्प, चंदन एवं वस्त्र अर्पित करें। नैवेद्य के रूप में माता को खीर, मालपुए अथवा शहद अर्पित करें।इस प्रकार पूजन करते समय मंगल चंडी माता के मूल मंत्र जाप करते रहे।
यदि समय का अभाव हो या कार्य की व्यस्तता हो तो कम से कम नीचे दिए गए स्तोत्र का पाठ मंगलवार के दिन अवश्य ही करें।
II श्री मंगलचंडि स्तोत्र II
मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके ऐं हुं हुं फट् स्वाहा।
ध्यानं
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम् I
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् II
श्वेतचम्पकवर्णाभां सुनीलोल्पललोचनाम् I
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् II
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे I
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने II
महादेव उवाच (स्तुती)
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके I
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके II
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके II
हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके I
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके II
मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले I
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये II
पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते I
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम् II
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम् II
मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले I
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि II
सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च शुभसुखप्रदे II
फलश्रुती
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः II
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः I
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम् II
II इति श्री श्रीमद देवी भागवत पुराणे मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम्II
हिंदी में अनुवाद:
ध्यान
चिरस्थाई यौवन वाली देवी मंगल चंडी हमेशा ही 16 वर्ष की प्रतीत होती हैं।
यह शुद्ध स्वरूप है और इनके होठ बिंबाफल के समान लाल हैं।
इनका मुख शरद ऋतु में खिले हुए कमल के समान है।
इनका रूप रंग श्वेत चंपा के फूल के समान है।
इनकी आंखें खिले हुए कृष्ण कमल के समान प्रतीत होती हैं।
संपूर्ण विश्व को धारण करने वाली यह देवी सबके लिए सभी वस्तुओं को प्रदान करने में कुशल है।
इस घोर संसार सागर में पड़े हुए व्यक्तियों को पार लगाने के लिए यह जहाज स्वरूप हैं।
मैं हमेशा ही इनकी पूजा करता हूँ।
यह ध्यान हुआ अब इनकी स्तुती भी सुनो।
महादेव द्वारा स्तुती
हे मंगल चंडी देवी तुम जगत की माता हो हमारी रक्षा करो।
तुम विपत्तियों का संहार करने वाली हर्ष और मंगल प्रदान करने वाली हो।।
तुम हर्ष और मंगल देने में निपुण, हर्ष तथा मंगलचंडी स्वरूप।
शुभ मंगल प्रदान करने वाली तथा शुभ मंगलचंडी हो।।
तुम मंगलदक्षा, शुभमंगलचण्डिका, मंगला, मंगलमूर्ती तथा सर्व मंगल मंगला कहलायी जाती हो ।
देवि ! साधुजनो को मंगल प्रदान करना तुम्हारा स्वभाव है।
तुम सबके लिये मंगलानिधी हो ।
देवि ! तुम मंगल ग्रह की इष्टदेवी हो।।
मंगलवार के दिन तुम्हारी पूजा होनी चाहिए।
मनुवंश में जन्मे राजा मंगल की पूजनीया देवी हो।।
मंगलाधिष्ठात्री देवी! तुम मंगलों के लिये भी मंगल हो
संसार के समस्त मंगल तुम पर निर्भर हैं।
तुम सबको मोक्षमय मंगल प्रदान करती हो।।
मंगलवार को सुपूजित होने पर मंगल मय
सुख प्रदान करने वाली हो।
सुख प्रदान करने वाली हो।
देवि! तुम संसार की मंगलाधारा हो तथा समस्त कर्मों से परे हो।।
फलश्रुती
इस स्तोत्र से स्तुति करके भगवान् शंकरने देवी मङ्गचण्डिकाकी उपासना की।
वे प्रति मङ्गलवार को उनका पूजन करके गये।
देवी का यह मंगल स्तोत्र जो ध्यान से सुनता है उसका निरंतर मंगल होते रहता है और कभी अमंगल नहीं होता।