षष्ठी देवी व्रत कथा
इस ब्लॉग को पढ़ने वाले सभी पाठकों को मेरा नमस्कार। प्रिय पाठकों आज इस लेख के माध्यम से हम षष्ठी देवी की महिमा के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। दोस्तों षष्ठी देवी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे कि बालदा, देवसेना, छठ मैया इत्यादि। तो आइए पहले जानते हैं की षष्ठी देवी कौन है और और उनके अलग अलग नामों का क्या अर्थ है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार षष्ठी देवी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री है जिनका विवाह शिवजी के जेष्ठ पुत्र कार्तिकेय के साथ हुआ है और वे भगवान कार्तिकेय को अति प्रिय है। इनका नाम षष्ठी देवी इसलिए पड़ा है क्योंकि यह मूल प्रकृति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई है।
इनका एक और नाम बालदा है जिसका अर्थ होता है संतान प्रदान करने वाली इसलिए इन्हें बच्चों की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। जो लोग संतान सुख से वंचित है उन्हें षष्ठी देवी की पूजा और उनके स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह हमेशा बालकों के आस पास रहकर उनकी रक्षा करती है और उन्हें जीवन प्रदान करती है।
तो पाठकों अब तक आप इस लेख को लिखने का कारण समझ ही गए होंगे जी हां आपने बिल्कुल सही समझा जिन लोगों को संतान प्राप्ति नहीं हो पा रही है या जिन्हें कोई भी वैद्यकीय परेशानी नहीं होते हुए भी संतान सुख नहीं मिल पा रहा है उन लोगों को षष्ठी देवी से जुड़ी हुई कथा का पाठ, मंत्र जाप और उनकी नियमित रूप से पूजा करनी चाहिए।
व्रत कथा
एक समय पर प्रियव्रत नाम का राजा हुआ करता था। वह स्वभाव से बहुत ही धार्मिक और दयालु प्रवृत्ति का था। उसके विवाह के काफी समय बीत जाने के बाद भी उनका कोई पुत्र नहीं था इसलिए कश्यप ऋषि ने एक यज्ञ संपन्न किया और उस यज्ञ का फल प्रियव्रत की रानी मालिनी को दे दिया जिसके फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गई और कुछ समय पश्चात उन्होंने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया परंतु वह मरा हुआ पैदा हुआ जिसके कारण राजा समेत पूरी प्रजा, मंत्री गण और स्वयं रानी बहुत ज्यादा दुखी हो गए।
राजा अपने अमृत पुत्र को सीने से लगाए श्मशान में रो रहा था। वह अपनी संतान की मृत्यु के कारण इतना दुखी हो गया था कि वह स्वयं मर जाना चाहता था तभी अचानक एक चमत्कार हुआ। उसे जंगल में हीरे-मोतियों से जड़ा हुआ अत्यंत सुंदर विमान दिखाई दिया जो तेजस्वी प्रकाश से जगमगा रहा था।
उस रथ पर एक गौर वर्ण की अत्यंत सुंदर स्त्री बैठी हुई थी जिसने रत्नों से जड़ित सुंदर आभूषण पहने हुए थे उसके नैन नक्श अत्यंत सुंदर थे जिसे देख कर लगता था मानो उसकी आयु रुक गई हो। उसे सामने देखकर राजा के मन में आदर भाव उत्पन्न में हुआ और उसने अपने पुत्र को जमीन पर रख दिया और उस अद्भुत देवी की स्तुति करने लगा जो आगे चलकर षष्ठी देवी स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध हुई।
इसके पश्चात राजा ने देवी से कहा कि मैं आपको पहचानने में असमर्थ हूं, देवी आप कौन हैं कृपया अपना परिचय दीजिए :
इस पर देवी ने अपना परिचय देते हुए कहा कि जब देवताओं की सेना असुरों से हार रही थी उस समय मैं देवताओं की सेना के रूप में प्रकट हुई और देवताओं को असुरों के ऊपर विजय दिलाई इस कारण से मुझे देवसेना कहा जाता है।
ब्रह्मा जी ने मुझे अपने मन से उत्पन्न किया था और भगवान कार्तिकेय को पत्नी के रूप में सौंप दिया था। मैं संतानहिन को संतान प्रदान करती हूं, सुवर को सुकन्या प्रदान करती हूँ, संपत्तिहीन को संपत्ति तथा कर्मठ व्यक्ति को कर्म प्रदान करती हूं। क्योंकि इस संसार में कुछ भी पाने के लिए मनुष्य को कर्म करना आवश्यक है। स्वयं भगवान भी मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार ही फल प्रदान करते हैं।
इस प्रकार अपना परिचय देने के बाद देवी ने उस बालक को अपने हाथों में उठा लिया और उसे अपने मंत्र शक्ति से पुनः जीवित कर दिया और उसे आकाश की ओर अपने साथ ले जाने लगी उस समय राजा ने एक बार फिर से स्तोत्र पढ़कर देवी की स्तुति की जिससे देवी प्रसन्न हो गई और राजा से कहा कि:-
तुम इस संसार में मेरी पूजा की शुरुआत करोगे और इस संसार को मेरे पूजा का महत्व भी समझोगे तभी मैं तुम्हारा पुत्र तुम्हें वापस लौटाऊंगी फिर राजा के हां कहने पर देवी ने राजा का पुत्र उसे लौटाते हुए कहा कि इसका नाम सूव्रत होगा और यह अत्यंत तेजस्वी, प्रतिभाशाली, पराक्रमी एवं कुल का नाम रोशन करने वाला कुलदीपक होगा।
तभी से राजा प्रियव्रत हर महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को षष्ठी देवी की पूजा कराने लगा तभी से शिशु के जन्म के छठवें दिन छठ माता की पूजा करने की प्रथा शुरू हुई।
इस लेख के अगले भाग में हम षष्ठी देवी की पूजा विधि मंत्र और स्तोत्र के बारे में जानेंगे तो इस आर्टिकल का अगला भाग जरूर पढ़ें।
इस लेख के अगले भाग में हम षष्ठी देवी की पूजा विधि मंत्र और स्तोत्र के बारे में जानेंगे तो इस आर्टिकल का अगला भाग जरूर पढ़ें।
FAQ's for Shashthi Devi Vrat Katha
Q1. षष्ठी देवी का व्रत किसे करना चाहिए ?
A. जिन्हें संतान नही हो रही है उन्हें करना चाहिए।
Q2. षष्ठी के व्रत कथा का पाठ कैसे करना चाहिए ?
A. सुबह के समय नहा कर शुद्ध हो जाए उसके बाद षष्ठी देवी के फोटो पर हल्दी कुमकुम और फूल चढ़ाएं फोटो ना हो तो मन ही मन उन्हें हल्दी कुमकुम और फूल चढ़ाने का भाव करें और फिर शांति से कथा का पाठ करें।
Q3. षष्ठी देवी की व्रत कथा किस दिन पढ़नी चाहिए ?
A. षष्ठी देवी की व्रत कथा का पाठ शुक्ल पक्ष में आने वाली षष्ठी तिथि के दिन करना चाहिए
Q4. षष्ठी देवी को और क्या कहते है?
A. बालदा, देवसेना, छठ मैया इत्यादि।