दशरथ कृत शनि स्तोत्र | Dashrath Krit Shani Stotra
प्रिया पाठको इस आर्टिकल में मैं आपको एक shani stotra के बारे में बताने जा रहा हूं और साथ ही मैं इसकी उत्पत्ति से जुड़ी हुई रोचक कथा के बारे में भी बताऊंगा जिसे आप इस स्तोत्र के साथ भी पढ़ सकते हैं या अगर आप शनिवार का व्रत करते हैं तो इसे आप शनिवार व्रत कथा के रूप में भी पढ़ सकते हैं । यह एक बहुत ही अच्छा साढ़े साती का उपाय है इतना ही नहीं शनि की महादशा, शनि की अंतर्दशा और शनि की ढैया का भी बहुत अच्छा उपाय है और शनि राशि परिवर्तन के दिन भी इसे पढ़ना चाहिए। जैसे की नाम से ही पता चलता है दशरथ कृत शनि स्तोत्र की रचना महाराज दशरथ ने की थी इसका उल्लेख पद्म पुराण में आता है। शनि महाराज ने प्रसन्न होकर राजा दशरथ को यह वरदान दिया था की जो कोई भी इस शनि स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करेगा उसे मैं कभी परेशान नहीं करूंगा।
शनि व्रत कथा
नारद जी ने शिव जी से पूछा की कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे शनि ग्रह की पीड़ा दूर हो सके। शिव जी ने उन्हें बताया की बहुत वर्षों पहले रघुकुल में एक दशरथ नाम के बहुत प्रसिद्ध राजा हुए वह बहुत ही वीर थे तथा वह सातों द्वीपों के स्वामी थे उन्हें चक्रवर्ती सम्राट के रूप में जाना जाता है। एक बार की बात है ज्योतिषियों ने उन्हें कहा की शनिदेव कृतिका नक्षत्र के आखिरी चरण में पहुंच गए हैं और उन्होंने दशरथ जी से कहा की जैसे ही शनिदेव रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे एक बहुत ही भयंकर योग का निर्माण होगा जो देवताओं और असुरों के लिए भी बहुत कठिन योग माना जाता है। इस योग के परिणाम स्वरूप 12 साल तक संसार में बहुत ही भयानक कष्ट फैलेगा यह सुनकर राजा दशरथ परेशान हो गए और उन्होंने अपने ज्योतिषियों से पूछा की इस संकट को कैसे रोका जा सकता है?
दशरथ जी के गुरु वशिष्ठ जी ने कहा की ब्रह्मा जी और इंद्र के लिए भी इस योग को रोक पाना असंभव है। यह बात सुनकर राजा दशरथ ने अपने साहस का परिचय दिया और अपने सभी दिव्य अस्त्रों के साथ धनुष लेकर वह नक्षत्र मंडल में चले गए रोहिणी नक्षत्र के पास जाकर उन्होंने अपने धनुष को खींचा और अपने संहार अस्त्र का आवाहन किया। यह अस्त्र देवता और असुरों दोनों के लिए ही बहुत भयंकर था इसे देखकर शनिदेव भयभीत हो गए और फिर उन्होंने हंसते हुए राजा से कहा तुम्हारे पुरुषार्थ से कोई भी शत्रु डर जाएगा मेरी दृष्टि से देवता असुर मनुष्य और नाग सभी भस्म हो जाते हैं लेकिन तुम बच गए हो मैं तुमसे और तुम्हारे इस साहस से बहुत प्रसन्न हूं तुम जो भी वर मुझसे मांगोगे मैं तुम्हें जरूर दूंगा।
इस पर राजा दशरथ ने शनिदेव से कहा की हे देव जब तक नदियां, समुद्र, सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी का अस्तित्व है तब तक आप रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश ना करें और 12 वर्षों तक आप कभी किसी को कष्ट भी ना दें। शनिदेव ने तथास्तु कहा और राजा दशरथ को वरदान दिया। यह दोनों ही वरदान मिलने के कारण राजा दशरथ बहुत प्रसन्न हो गए और अपने रथ पर धनुष रखकर उन्होंने शनिदेव के सामने दोनों हाथ जोड़ें और इस प्रकार उन्होंने शनि देव की शनि स्तोत्र से स्तुति की।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नमः कृष्णाय नीलाय शीतिकण्ठनिभाय च ।
नमः कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नमः ।।
नमो निर्मांसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदरभायकृते ।।
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नमः ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करलिने ।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ।।
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तु ते ।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः ।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मजसूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः ।।
प्रसादम कुरु में देव वराहोरऽहमुपागतः ।।
इस स्तुति से प्रसन्न होकर सूर्यपुत्र शनिदेव ने कहा, राजन तुम्हारे इस स्तोत्र रूप स्तुति से मैं बहुत ही प्रसन्न हूं इसलिए तुम कोई वर मांगो मैं उसे अवश्य पूरा करूंगा। इसके बाद राजा दशरथ ने कहा की हे सूर्यपुत्र मेरी आपसे प्रार्थना है की आप किसी भी देवता, राक्षस, मनुष्य, पशु पक्षी या नाग ऐसे किसी भी प्राणी को कष्ट ना पहुंचाएं।
इस पर शनि देव ने राजा दशरथ से कहा की इनमें से किसी के मृत्यु स्थान, जन्म स्थान या चौथे घर में (कुंडली का आठवां घर, कुंडली का पहला घर या लग्न, कुंडली का चौथा भाव में) मैं जब भी रहता हूं उन्हें मृत्यु तुल्य कष्ट देता हूं, लेकिन जो भी अपनी पुरी श्रद्धा से अपने मन को पवित्र करते हुए एकाग्रचित्त होकर मेरी लोहे की प्रतिमा की शमी के पत्तों से पूजा करेगा और तिल मिश्रित उड़द का भात, लोहा, काली गाय या काला बैल ब्राह्मण को दान देगा और जो खासकर मेरे दिन यानी शनिवार के दिन यह स्तोत्र को पढ़कर मेरी पूजा करेगा और पूजा करने के बाद भी अपने हाथ जोड़कर जो इस स्तोत्र का जाप करेगा मैं उसे कभी भी पीड़ा नहीं दूंगा।
जब भी किसी व्यक्ति के मैं गोचर में या जन्म लग्न में आऊंगा (जिसे हम साधारण भाषा में साढ़ेसाती या शनि की ढैया भी कहते हैं) या फिर उसे व्यक्ति को मेरी दशा या अंतर्दशा चल रही होगी (शनि की महादशा या शनि के अंतर्दशा) उसकी पीड़ा का निवारण करके मैं हमेशा उसकी रक्षा करूंगा और इस स्तोत्र का जाप करने से पुरी दुनिया शनि ग्रह के कष्ट से मुक्ति पा सकती है और हे राजन इसीलिए मैंने यह तुम्हें वरदान दिया है।
FAQ on Shani Stotra
Q1. Saturn transit 2023 के प्रभाव के कारण किन राशियों को दशरथ कृत शनि स्तोत्र पढ़ना चाहिए?
A1. कर्क राशि, वृश्चिक राशि, मकर राशि, कुंभ राशि और मिन राशि के लोगों को दशरथ कृत शनि स्तोत्र पढ़ना चाहिए।
Q2. दशरथ कृत शनि स्तोत्र कब पढ़ना चाहिए ?
A2. दशरथ कृत शनि स्तोत्र सुबह नहाने के बाद पढ़ना चाहिए संभव हो तो शाम को 7:00 बजे भी पढ़ना चाहिए।
Q3. दशरथ कृत शनि स्तोत्र पढ़ने से क्या लाभ होता है ?
A3. Dashrath krit Shani Stotra पढ़ने से शनि की पीड़ा कम होती है।
Q4. किन लोगों को दशरथ कृत शनि स्तोत्र पढ़ने की ज्यादा आवश्यकता है ?
A4. जिन लोगों की sadesati शुरू है, शनि की dhaiya शुरू है या Shani ki mahadsha चल रही है या Shani ki antardsha चल रही है उन्हें यह शनि स्तोत्र पढ़ना चाहिए क्योंकि यह एक बहुत अच्छी astrological remedy है ।
Q5. नीच के शनि का उपाय क्या है?
A5. शनिवार को व्रत रखें ऊपर दी गई व्रत कथा पढ़ें और सुबह शाम शनि स्तोत्र का पाठ करें।
Q6. कुंडली में शत्रु राशि का शनि हो या कंटक शनि हो तो क्या करें ?
A6. दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें।
Q7. दशरथ कृत शनि स्तोत्र पढ़ने की शुरुआत कब से करें?
A7. किसी भी शुक्ल पक्ष के शनिवार से या शनि जयंती के दिन से इस स्तोत्र को पढ़ने की शुरुआत करें।
Q8. साडेसाती का सरल उपाय कौन सा है ?
A8. शनि स्तोत्र का पाठ, शनि के बीज मंत्र का जाप, शनिवार का उपवास, गरीबों को दान पशुओं की सेवा यह सब साडेसाती के सरल उपाय है।